तुर्किये में हाथ-पैर के सहारे चलने वाले 5 लोग:फैमिली के 14 मेंबर सामान्य; साइंटिस्ट बोले- ये 40 लाख साल पहले लौटने जैसा
लंदन
तुर्किये में 18 लोगों का एक परिवार है। इसके पांच सदस्य ऐसे हैं, जो दोनों हाथों और दोनों पैरों के सहारे ही चल पाते हैं। यानी ये हमारी तरह सिर्फ दो पैरों पर नहीं चल सकते। फैमिली के बाकी मेंबर्स बिल्कुल दूसरे इंसानों की तरह हैं।
ये मामला पहली बार 2006 में चर्चा में आया था। दुनिया के तमाम साइंटिस्ट्स ने रिसर्च किया, लेकिन जानवरों की तरह ‘चार पांव’ पर चलने वाली इस गुत्थी को सुलझा नहीं सके। अब मामला इसलिए सुर्खियों में है, क्योंकि कुछ साइंसटिस्ट्स इसे ‘रिवर्स इवोल्यूशन’ बता रहे हैं। बहुत आसान भाषा में आप इसे वो दौर मान सकते हैं, जब इंसान इस पृथ्वी पर आया और धीरे-धीरे उसका शारीरिक विकास होता चला गया।
40 लाख साल पुरानी कहानी
- मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक- ऐसा नहीं है कि इन लोगों में कोई जेनेटिक प्रॉब्लम है। बल्कि, सवाल सिर्फ सिर्फ इतना ही कि ये लोग मानव सभ्यता के विकास के करीब 40 लाख साल के इतिहास को दोहरा रहे हैं। और ऐसा क्यों हो रहा है, और इस फैमिली में ही क्यों हो रहा है? ये सबसे बड़ा सवालिया निशान है, इसका पुख्ता जवाब किसी साइंसदान के पास अब तक तो नहीं है।
- यह अजीब वाकया तुर्किये के उलास परिवार में ही होता है। रेसित और उनकी पत्नी हेतिस उलास के 19 बच्चे हुए। इनमें से पांच ‘चार पांव’ पर चलते हैं। एक और बच्चा भी चार पांव पर ही चलता था, लेकिन पांच साल उम्र में उसकी मौत हो गई थी।
- बहरहाल, हाथ-पैरों के सहारे चलने की वजह से गांव के लोग उन्हें बहुत परेशान करते हैं। कई बार तो राक्षस समझकर उन्हें पत्थर भी मारते हैं। इनमें चार महिलाएं हैं और कभी घर से ज्यादा दूर नहीं जातीं, क्योंकि लोग परेशान करते हैं।
- चार महिलाएं आपस में सगी बहनें हैं। इनके नाम है- सफिए, हेसर, सेेनेम और एमिनी। एक भाई है। इसका नाम हुसैन है। इनका गांव साउथ तुर्किये के सीरिया बॉर्डर के करीब है। सीरिया के सिविल वॉर की वजह से अकसर यहां भी जंग के हालात रहते हैं। लिहाजा, खतरा हर पल रहता है।
- हुसैन चार पांव के सहारे कई किलोमीटर तक पैदल चलता है। उसके हाथ और पैरों में कांटे भी चुभते हैं और इसलिए वो अकसर जख्मी हो जाता है। वो आम लोगों की तरह ही बातचीत करता है, लेकिन इस सवाल का उसके पास भी कोई जवाब नहीं कि वो सिर्फ दो पैरों पर क्यों नहीं चल पाता।
- इसे बदकिस्मती कहें या समाज का डर, लेकिन इन चार बहनों और एक भाई में से कोई भी स्कूल के दरवाजे तक नहीं पहुंच सका। हालांकि, घर में रहकर उन्होंने स्थानीय कुर्दिश भाषा सीख ली।
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