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जीत का चमत्कार कर दिखाने वाले सांसद यादव के टिकिट की इस बार गारंटी नहीं

 


पिछले चुनाव में


जीत का चमत्कार कर दिखाने वाले सांसद यादव के टिकिट की इस बार गारंटी नहीं

-केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया भी टिकिट की दौड़ में 

शिवपुरी ब्यूरो। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में केपी यादव ने सिंधिया राज परिवार के प्रभाव वाली गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट पर चमत्कार को अंजाम देकर ज्योतिरादित्य सिंधिया को 1 लाख 25 हजार मतों से पराजित कर दिखाया था। यह चमत्कार इसलिए था कि इस सीट पर सिंधिया राज परिवार के सदस्य अभी तक अपराजेय रहे थे। इस सीट का प्रतिनिधित्व राजमाता विजया राजे सिंधिया से लेकर उनके सुपुत्र माधवराव सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने किया था और वह लगातार इस सीट से चुनाव जीतते आ रहे थे। केपी यादव की भारी जीत के बाद भी इस चुनाव में इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि उन्हें गुना लोकसभा सीट से दूसरी बार टिकिट दिया जाएगा। इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण यह कि जिन ज्योतिरादित्य सिंधिया को उन्होंने पराजित किया था वह अब भाजपा में आ गए हैं और भाजपा में काफी प्रभाव पूर्ण स्थिति में होकर केन्द्रीय मंत्री है। दूसरा कारण यह है कि 2019 में केपी यादव की जीत को उनका व्यक्तिगत करिश्मा न मान कर मोदी फेक्टर का प्रभाव माना जा रहा है। इस सीट से टिकिट की दौड़ में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का दावा सबसे मजबूत माना जा रहा है। हालांकि शिवपुरी की निवर्तमान विधायक यशोधरा राजे सिंधिया को भी इस सीट से टिकिट दिया जा सकता है। 

गुना शिवपुरी लोकसभा सीट सिंधिया राजपरिवार के प्रभाव की मजबूत सीट मानी जाती थी। 1977 में जब कांग्रेस के विरूद्ध आक्रोश चरम पर था। समूचे उत्तर भारत में कांग्रेस का सफाया हो गया था। पूर्व पीएम इन्द्रागांधी से लेकर उनके सुपुत्र संजय गांधी भी चुनाव हार गए थे। प्रदेश में गुना सीट पर कांग्रेस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार स्व. माधवराव सिंधिया ने जनता पार्टी के मजबूत प्रत्याशी आजाद हिंद फौज के सैनानी कर्नल ढिल्लन को पराजित कर दिया था। इस सीट का राजमाता विजया राजे सिंधिया और माधव राव सिंधिया ने चार-चार बार प्रतिनिधित्व किया है। स्व. माधवराव ङ्क्षसधिया के निधन के बाद उनके सुपुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया इस सीट से लगातार चार बार विजयी हुए हैं। खास बात यह है कि इस सीट पर सिंधिया राजपरिवार ने  कांग्रेस से लेकर जनसंघ, निर्दलीय उम्मीदवार और कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में विजयश्री हांसिल की है। जिससे समझा जा सकता है कि इस सीट पर सिंधिया राज परिवार का प्रभाव कितना मजबूत है। सिंधिया राज परिवार के सदस्य जिस भी दल से चुनाव लड़े उन्होंने जीत का वरण किया है। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में सिंधिया फेक्टर के प्रभाव का क्षरण शुरू हुआ। उस चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस प्रत्याशी के रूपम में चुनाव तो जीत गए लेकिन शिवपुरी और गुना विधानसभा सीटों पर उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। शहरी क्षेत्र में मोदी फेक्टर सिंधिया फेक्टर की तुलना में अधिक प्रभावी रहा। उस चुनाव में भाजपा ने सिंधिया के मुकावले काफी मजबूत प्रत्याशी जयभान सिंह पवैया को उम्मीदवार बनाया था। भाजपा ने उस चुनाव में आर पार की लड़ाई लड़ी थी लेकिन सिंधिया के मजबूत गढ़ को भाजपा ढहा नहंी पाई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से आए केपी यादव को उम्मीदवार बनाया। श्री यादव काफी कमजोर प्रत्याशी माने जा रहे थे, कांग्रेस में वह सिंधिया समर्थक थे और विधानसभा चुनाव में अशोकनगर से टिकिट न मिलने के कारण वह भाजपा में शामिल हुए थे। ऐसा लग रहा था कि वह गुना में ज्योतिरादित्य सिंधिया से आसानी से चुनाव हार जाऐंगे। लेकिन उस चुनाव में मोदी लहर इतनी प्रभावी हुई कि कमजोर प्रत्याशी और बसपा के प्रत्याशी के कांग्रेस के पक्ष में बैठने के बावजूद भाजपा सवा लाख मतों से इस संसदीय क्षेत्र में जीत गई। उस जीत को मोदी लहर का प्रभाव माना गया। यही कारण रहा कि सिंधिया जैसे महावली को पराजित करने के बाद भी केपी यादव को भाजपा की राजनीति में अधिक महत्व नहीं मिला। इससे वह निराश हुए और उनकी सक्रियता भी काफी कम हुई। इसी बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में आ गए और उनके कारण ही भाजपा प्रदेश में मार्च 2020 में सरकार बनाने में सफल रही, इसके पारितोषिक स्वरूप उन्हें भाजपा ने राज्य सभा में लिया और केन्द्रीय मंत्री बनाया। प्रदेश में उनके समर्थक विधायकों को भी महत्वपूर्ण मंत्रालय मिले। 2023 के विधानसभा चुनाव में भी प्रदेश में भाजपा की सत्ता बनी और ङ्क्षसधिया के समर्थक विधायकों को अच्छे मंत्रालय दिए गए। भाजपा में आने के बाद केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी रीति नीति में भी काफी परिवर्तन किए और वह संघ के भी काफी नजदीक आए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से भी उनके रिश्ते काफी घनिष्ठ बने। यही कारण है कि सांसद केपी यादव का टिकिट इस बार खतरे में नजर आ रहा है। 

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