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बगैर भवन के नीम के पेड़ के नीचे आज भी लगता हैं विद्यालय


बगैर भवन के नीम के पेड़ के नीचे आज भी लगता हैं विद्यालय 

-50 छात्रों पर दो शिक्षक पदस्थ्य,  समुह द्वारा नहीं दिया जाता है मध्यान्ह भोजन

-शिक्षा विभाग के अधिकारी के साथ जनप्रतिनिधि भी नहीं दे रहे इस ओर ध्यान

शिवपुरी ब्यूरो। मध्य प्रदेश शासन द्वारा शिक्षा के नाम पर प्रतिवर्ष करोड़ों रूपए का बजट स्वीकृत किया जाता है। लेकिन प्रदेश भर में ऐसे सैकड़ों ग्राम ऐसे हो सकते हैं, जो आज तक मूलभूत सुविधाओं तक से वंचित बने हुए हैं जहां पर विद्यालय भवन हैं और ना ही आंगनबाड़ी केन्द्र है। विद्यालय भवन और आंगनबाड़ी तो दूर की कोड़ी है यहां तो  सड़क जैसी सुविधायें तक ग्रामीणों को आज तक उपलब्ध नहीं हो पाई है। कोलारस विधानसभा क्षेत्र में आज भी खुले में शाला लग रही हैं। जबकि प्रदेश सरकार द्वारा भले ही शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता पर सबसे ज्यादा राशि खर्च कर रही हैं, लेकिन तीनों ही मामलों में कोलारस विधानसभा क्षेत्र सबसे पीछे नजर आ रहा हैं। उक्त बात की जानकारी का पता तब चला जब शिक्षा के क्षेत्र में आज भी बगैर विद्यालय भवन के खुले में नीम के पेड़ के नीचे आज भी ऋषीमुनियों की तरह शाला लगाने के लिए शिक्षक विवश बने हुए हैं। ग्रामीणों का कहना था कि एक शिक्षक आता हैं वह भी घंटे दो घंटे नीम के पेड़ के नीचे बच्चों को पढ़ा कर चला जाता हैं और विद्यालय का सामान वहां रहने वाली एक परिवार के घर में रखा हुआ हैं।

जानकारी के अनुसार बदरवास तहसील मुख्यालय से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर धामनटूक पंचायत के ग्राम सिद्धपुरा जहां पर बंजारा समुदाय के परिवार के ग्रामीणो सुल्तान राजू, विनोद, कल्ली बाई, दाका बाई, गेंदालाल आदि ने बताया है। कि विगत 20 वर्षों से पहले राजगढ़ जिले से मजदूरी करने आए थे, इसके बाद यहीं पर निवास करने लगे और ग्राम का दर्जा मिला इस ग्राम में बिजली और पानी की भारी समस्या थी लोग गंदा पानी पी रहे थे पूर्व विधायक राम सिंह दादा के समय पर स्वदेश सामाचार पत्र द्वारा जब इस बात की आवाज उठाई थी तभी पूर्व विधायक स्व. राम सिंह दादा ने बिजली और पानी की व्यवस्था की थी, लेकिन इसके बाद इधर किसी ने भी कोई ध्यान नहीं दिया जिसके कारण आज भी पिछड़ा हुआ हैं और स्कूल आज भी पेड़ के नीचे लगता है वह भी कभी कबार शिक्षक आते हैं और बिस्किट बांट कर चले जाते हैं, इस ग्राम में करीब 50 बच्चे दर्ज हैं दो टीचर हैं ग्रामीणों का कहना है कि हम शिक्षकों के नाम भी नहीं जानते एक बक्सा रखा हुआ है जिसमें स्कूल के कागज रखे हुए हैं हम अपने बच्चों को प्राइवेट टीचर के माध्यम से 500 देकर पढ़ाई करा रहे हैं। अब देखना यह है कि एक तरफ तो सरकार विकास यात्रा निकाल कर अपनी उपलब्धियां गिना रही  हैं, लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में आज भी भवन की बांट जो रहे ग्राम सिद्धपुरा के नागरिकों को आखिर स्कूल भवन की कब अनुमित मिल पाती हैं जिससे उनके बच्चे समय से विद्यालय पहुंचकर शिक्षा ग्रहण कर सकें।

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खटिया पर बैठक पढ़ाते

बदरवास क्षेत्र के ग्राम सिद्धपुरा में शासकीय विद्यालय आंगनवाड़ी भवन बनाने के लिए एक टपरिया में आज भी संचालित हो रहा है जिसमें दो शिक्षा ग्रहण कराते हैं। जबकि शिक्षकों शासन द्वारा प्रतिवर्ष शाला विकास ओझा शिक्षण कार्य करने के लिए के लिए हजारों रूपए की राशि आते हैं जिनके बैठने के लिए प्रदाय की जाती है तब सवाल यह विद्यालय में एक भी कुर्सी, टेबिल उठता है कि ग्राम सिद्धपुरा के लिए, नहीं है और न ही छात्र एवं शासन द्वारा भेजी गई शाला छात्राओं को बैठने के लिए टाट विकास की धनराशि कहां पर पट्टी ही नहीं है। ऐसी परिस्थिति में गोलमाल हो जाती है। सिद्धपुरा ग्रामीणों द्वारा शिक्षकों को मानवता का शासकीय विद्यालय देखकर के नाते एक खटिया उपलब्ध करा प्राचीन समय में संचालित किए दी गई है। जिस पर बैठकर जाने वाले गुरुकुल की याद ताजा शिक्षक छात्र एवं छात्राओं को कर देता है।

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स्वास्थ्य के मामले में भी पिछड़ा हैं कोलारस विधानसभा क्षेत्र 

कोलारस अनुविभाग के अंतर्गत आने वाले दर्जनों सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर यदि गौर किया जाए तो कई जगह ताले ही झूलते नजर आते हैं। जबकि तहसील मुख्यालयों पर ही चिकित्सकों की कमी दिखाई दी जा रही हैं। क्योंकि यहां पर ए.एन.एम या वार्ड वायों द्वारा मरीजों की मल्लम पट्टी करके स्वास्थ्य सुविधायें उपलब्ध कराई जा रही हैं। अभी हाल ही में एक मामला रन्नौद सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र का आया था जहां पर वार्डवाय द्वारा मरीज को टांके लगाए गए थे जिसका वीडियो भी वायरल किया गया। जबकि खतौरा, लुकवासा, मथना जैसे कई सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों के आज भी ताले ही समय पर नहीं खुल पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में नागरिकों कैसी स्वास्थ्य सुविधायें उपलब्ध हो रही होगी इसका आप लोग स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं।

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