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सावित्रीबाई फुले का जीवन नारीशक्ति को आत्मनिर्भर बनाने के लिए समर्पित है: श्री गोपाल शर्मा

-सरस्वती विद्यापीठ आवासीय विद्यालय में मनाई गई भारत की प्रथम अध्यापिका सावित्री बाई फुले की जयंती शिवपुरी ब्यूरो। भारत की प्रथम अध्यापिका और नारी उद्धारकर्ता समाज सेविका सावित्री बाई फुले की जयंती बड़े ही हर्षोल्लास पूर्वक विद्याभारती द्वारा संचालित सरस्वती विद्यापीठ आवासीय विद्यालय में मनाई गई । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रुप में विद्याभारती मध्य भारत प्रांत के ग्रामीण शिक्षा के ग्वालियर भाग प्रमुख गोपाल शर्मा एवं अध्यक्षता उमाशंकर भार्गव प्राचार्य सरस्वती विद्यापीठ आवासीय विद्यालय द्वारा की गई । कार्यक्रम का शुभारंभ मंचासीन अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्वलित कर माँ सरस्वती एवं सावित्री बाई के चित्र पर मार्ल्यापण कर सरस्वती वंदना से किया गया। कार्यक्रम का संचालन उदयवीर विश्वकर्मा के द्वारा एवं अतिथि स्वागत विद्यालय के वरिष्ठ आचार्य रामपाल तिवारी एवं रमेश रावत द्वारा श्रीफल भेंट कर किया गया। श्री शर्मा ने सदन को संबोधित करते हुए स्त्री एवं बाल विकास में सावित्री बाई फुले के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि नारी मुक्ति आन्दोलन की पहली नेता तथा देश की पहली महिला अध्यापिका सावित्री बाई का जन्म 3 जनवरी 1831 में हुआ ढ्ढ उनका विवाह 9 वर्ष की आयु में पूना के ज्योतिबा फुले के साथ हुआ इस के बाद सावित्री बाई के जीवन में परिवर्तन आरंभ हो गया। 19 वी सदी में बाल विवाह छुआछूत सतीप्रथा जैसी कुरीतियाँ बुरी तरह व्याप्त थी महाराष्ट्र के महान सुधारक, विधवा पुनर्विवाह तथा स्त्री शिक्षा, नारी समानता के अगुआ महात्मा ज्योतिबा फुले की धर्मपत्नी ने अपने पति के सामाजिक कार्यों में कंधे से कन्धा मिलाकर काम किया अनेक बार उनका मार्ग दर्शन भी किया। उनकी जीवनी एक नारी के जीवन और मनोबल को समर्पित है। सावित्री बाई ने तमाम विरोध और बाधाओं के बावजूद- धैर्य और आत्मविश्वास से अपना कार्य आगे बढ़ाती रही ढ्ढ उन्होंने भारतीय समाज में स्त्रियों की शिक्षा की जोत जलाने की एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वे प्रतिभाशाली कवयित्री, आदर्श अध्यापिका, नि:स्वार्थ समाज सेविका एवं सत्य शोधक समाज का नेतृत्व करने वाली महान नेता थी। वह समय स्त्रियों के लिए अंधकार पूर्ण था। नारी शिक्षा का प्रचलन नहीं था, विवाह के समय तक सावित्री बाई की स्कूली शिक्षा नहीं हुई थी और ज्योतिबा फुले तीसरी कक्षा पढ़े थे पर उनके मन में समाज की कुरुतियाँ दूर करने की और समाज सेवा की तीव्र इच्छा थी। सर्वप्रथम उन्होंने सावित्री बाई को शिक्षित करना आरंभ किया। आम के पेड़ के नीचे विद्यालय लगाकर स्त्री शिक्षा की पहली प्रयोगशाला आरंभ हुई ढ्ढ उन्होंने स्कूली शिक्षा प्राप्त कर अध्यापन का प्रशिक्षण लिया तथा भारत की पहली महिला अधियापिका बनाने का गौरव प्राप्त किया। इस अवसर पर सावित्रीबाई फुले सिलाई प्रशिक्षण केंद्र की संचालिका श्रीमती पूनम सविता सहित केंद्र की प्रशिक्षणार्थी बहने,विद्यालय के समस्त आचार्य एवं छात्र उपस्थित रहे।
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