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...अर्थ दण्ड से कठघरे में राजधर्म


...अर्थ दण्ड से कठघरे में राजधर्म
-कोरोना फण्ड बसूली में पुलिस की कार्यवाही से मचा हाहाकार
लोकतंत्र में राजधर्म की बात करना क्या बेमानी हैं? इस प्रश्न पर बौद्धिक यह हैं कि जनता का जनता के लिए जनता के द्वारा निर्मित तंत्र लोकतंत्र हैं तो फिर नेता और नौकरशाह क्या हैं? यह लोकतंत्र के अघोषित राजा हैं और इनसे राजधर्म की उम्मीद करना आम आदमी का नैतिक-संवैधानिक हक हैं।  आपात स्थिति में क्या यह दोनों लोकतंत्र के महत्वपूर्ण अंग आम आदमी के हितों के प्रति संकल्पित हैं? क्या इनकी कार्यप्रणाली राजधर्म के अनुरूप हैं! इन प्रश्नों का जवाब आम आदमी दे सके इसलिए सुविधा की दृष्टि से यह बताया जा रहा हैं कि राजधर्म का पहला नियम किसी को भी किसी भी तरह का नुकसान न पहुंचाना हैं। दूसरा नियम उद्देश्य और उसकी पूर्ति के लिए की जा रही कार्यवाही में नम्रता पूर्वक सामंजस्य बिठाना हैं। अब उपरोक्त प्रसंग में सम समायिक सवाल यह हैं कि संक्रमण से बचाव के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर जो बसूली कलेक्टर के आदेश पर जिस अंदाज में पुलिस कर रही हैं क्या वह उचित हैं? जवाब जनमत से और स्वयं के अनुभव से  जो मिल रहा हैं उससे आम आदमी में मचा हाहाकार प्रतिध्वनित हो रहा हैं। जनता की जमकर आर्थिक दण्ड के नाम पर जेबें ढीली की जा रही हैं। छोड़ा महिलाओं को भी नहीं जा रहा हैं। हद यह हैं कि जिसका का भी चेहरा जिस समय भी ढका नहीं पाया जा रहा हैं उसे मौका देखकर दबोचने के बाद उसे  संक्रमण से बचाव की समझाईश देने की जगह सिर्फ और सिर्फ पैसा बसूला जा रहा हैं। संक्रमण से बचाव और उपाय को अंदेखा कर सिर्फ और सिर्फ बसूली की जा रही हैं। अभियान स्तर पर की जा रही बसूली में यह कतई नहीं देखा जा रहा कि जिस व्यक्ति को पकड़ कर रसीद काट रहे हो वह अपना फेस कबर करने का इंतजाम किया हुआ हैं। उसकी गर्दन पर रूमाल, गमछा या स्वाफी हैं किसी बजह से अगर यह फेस से सरक गई तो उसे हिदायत देकर सावधान किया जा सकता हैं यह न करके सिर्फ और सिर्फ अर्थ दण्ड देकर आम आदमी को आर्थिक नुकसान पहुंचाकर जिला प्रशासन क्या साबित करना चाहता हैं। क्या उसका एक मात्र उद्देश्य आम आदमी की पहले से झुकी कमर (आर्थिक तंग हाली) को तोड़कर (अर्थ दण्ड) उसे पूरी तरह धराशाही (मिट्टी में मिला देना) कर देने का हैं। दिखता तो यही हैं इससे यह भी समझ में नहीं आता कि रसीद काटकर जो फण्ड आप एकत्रित कर रहे हो उसका करोगे क्या? क्योंकि कलेक्टर के निर्देश पर जिसकी रसीद काट रहे हो उसे कलेक्टर के आदेश के अनुरूप दो मास्क फ्री में देना तो दूर एक मास्क भी नहीं दे रहे हो तो जो लापरवाही जिसकी रसीद कट रही हैं वही लापरवाही रसीद काटने वाला भी कर रहा हैं। यह क्या मजाक हैं। क्या जनता से उठ रही आवाज में यह आरोप हैं कि रसीद काट कर जो बसूली की जा रही हैं उसका उपयोग खाली खजाने को भरने के लिए किया जाएगा क्योंकि उप चुनाव में पैसे की जरूरत तो पड़ेगी! बसूली से झल्लाकर जनता जो समझ रही हैं जो चीख-चीख कह रही हैं में जानता हूं वह सच नहीं हो सकता लेकिन बसूली का शिकार बन रही जनता को और बसूलने वालों को कौन समझाए की उनकी इस कार्यवाही से जनता में क्या संदेश जा रहा है। समय रहते शासन प्रशासन नहीं  चेता तो लुटी पिटी जनता को उप चुनाव में मौका तो मिलेगा ही। करैरा और पोहरी में किसी भी समय उप चुनाव का बिगुल बज सकता हैं, सत्ताधारी अगर जागरूक नहीं हुए तो किसी भी समय चुनाव ताल ठोकने विपक्ष बसूली को मुद्दा बना सकता हैं...। जय हो!
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