अफसर शाही झाड़ने के लिए हथिया रहे हैं सीएसी, बीएसी, व बीआरसी जैसे पद
-शिक्षक छात्र अनुपात के अनुरूप नहीं हैं विद्यालयों में शिक्षक
-जिला मुख्यालय पर प्रतिनियुक्ति पर जमे हैं दर्जनों शिक्षक
शिवपुरी ब्यूरो। शिक्षण कार्य से अघाचुके शिक्षकों की नजर सीएसी, बीएसी, एवं बीआरसी जैसे मलाईदार पदों पर जमी हुई हैं। जिले में पदस्थ अधिकांश शिक्षकों की यही महत्वकांक्षा हैं कि येनकेन प्रकरेंण उक्त पदों को किस तरह से हथियाया जाए। जिससे शिक्षण कार्य से पल्ला छूटे और विभिन्न विद्यालयों में पहुंचकर अपनी अफसरशाही झाड़ सकें। वहीं जिले में ऐसे दर्जनों विद्यालयें हैं जहां छात्रों की संख्या के हिसाब से शिक्षक नहीं हैं तथा दर्जनों ऐसे विद्यालय हैं जहां नाम मात्र के छात्र होने पर भी दो या तीन शिक्षक पदस्थ हैं। कई महत्वकांक्षी शिक्षकों की नियुक्ति कहीं ग्रामीण क्षेत्र में हैं, लेकिन साहब के आगे पीछे घूमकर अपनी प्रतिनियुक्ति जिला मुख्यालय अथवा नजदीकी ग्रामीण क्षेत्रों में करा ली हैं। जो सिर्फ और सिर्फ साहब की जी हुजूरी में लगे रहते हैं तथा विद्यालय जाने में अपनी तौहीन समझते हैं। जो इस मुहावरे को चरितार्थ करता नजर आता हैं कि सैंया भए कोतवाल अब डर कायका।
वॉक्स:-
मूल कार्य से भटक गए हैं सीएसी और बीएसी
शिक्षक से सीएससी व बीएसी बने शिक्षक इन दिनों अपने मूलकार्य से भटकर कर अफसर शाही झाड़ने में लगे हुए हैं। जबकि इनका मुख्य कार्य जिस विद्यालय में पदस्थ हैं वहां शिक्षण कार्य करने के साथ-साथ इनके अधीनस्थ आने वाले विद्यालयों में पहुंचकर विषय बार आ रही कठिनाईयों को दूर कर उन्हें सरलीकरण करके बच्चों को शिक्षा से अवगत कराना हैं साथ ही जो शिक्षक को परेशानी आ रही हैं उसकी समस्या का भी समाधान करना होता हैं। लेकिन सीएसी व बीएसी द्वारा शासकीय नियमानुसार न चलते हुए सिर्फ विद्यालयों के निरीक्षण के नाम पर वहां पर पदस्थ शिक्षकों से अवैध रूप से बसूली करना ही इनका मूल उद्देश्य बन गया हैं। जिससे एक ओर तो शिक्षा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हो पा रहा हैं वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में पदस्थ सीधे साधे शिक्षकों को वे बजह की आर्थिक क्षति उठानी पढ़ रही हैं।
वॉक्स:-
पद स्थापना बाले विद्यालय से रहते हैं नदारद
सीएसी व बीएसी बने शिक्षक जिस विद्यालय में पदस्थ होते हैं वहां पर केवल हस्ताक्षर करने के लिए जाते हैं इसके बाद स्कूल निरीक्षण के नाम की कहकर वहां निकल जाते हैं और दिन भर गायब रहते हैं इन्हें बच्चों की शिक्षा से कोई लेना देना नहीं रहता हैं। इन शिक्षकों को सिर्फ और सिर्फ अफसरशाही झाड़ने के अलावा और कोई कार्य नहीं रहता हैं। अधिकारियों द्वारा जानकारी मांगी जाने पर उन्हें भी गुमराह कर दिया जाता हैं अथवा इनके द्वारा बसूल की जाने वाली अवैध धनराशि में से एक हिस्सा वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचा दिया जाता हैं। जिसकी बजह से वरिष्ठ अधिकारी भी इनके विरूद्ध मुंह खोलने को तैयार नहीं होते।
वॉक्स:-
बिना कमाण्डर के ही चल रहा हैं शिक्षा विभाग
देश का भविष्य कहे जाने वाले छात्र छात्राओं के भविष्य के प्रति जिला प्रशासन व शिक्षा विभाग कितना गंभीर हैं जो इस तथ्य से उजागर होता हैं कि जिले में जिला शिक्षा अधिकारी जैसा महत्वपूर्ण पद लगभग छह माहों तथा जिला समन्वयक परियोजना अधिकारी का पद लगभग तीन माह से खाली पड़े हैं। लेकिन जिले के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा शिक्षा विभाग का प्रभार डिप्टी कलेक्टर को दे रखा हैं। जिसकी बजह से शिक्षा विभाग के कई महत्वपूर्ण कार्य रूके हुए हैं। वहीं डीपीसी की कुर्सी भी लम्बे समय से रिक्त पड़ी हुई हैं। जिसकी बजह से जिले में संचालित विभिन्न विद्यालयों में शिक्षण कार्य की स्थिति भगवान भरोसे चल रही हैं।
-शिक्षक छात्र अनुपात के अनुरूप नहीं हैं विद्यालयों में शिक्षक
-जिला मुख्यालय पर प्रतिनियुक्ति पर जमे हैं दर्जनों शिक्षक
शिवपुरी ब्यूरो। शिक्षण कार्य से अघाचुके शिक्षकों की नजर सीएसी, बीएसी, एवं बीआरसी जैसे मलाईदार पदों पर जमी हुई हैं। जिले में पदस्थ अधिकांश शिक्षकों की यही महत्वकांक्षा हैं कि येनकेन प्रकरेंण उक्त पदों को किस तरह से हथियाया जाए। जिससे शिक्षण कार्य से पल्ला छूटे और विभिन्न विद्यालयों में पहुंचकर अपनी अफसरशाही झाड़ सकें। वहीं जिले में ऐसे दर्जनों विद्यालयें हैं जहां छात्रों की संख्या के हिसाब से शिक्षक नहीं हैं तथा दर्जनों ऐसे विद्यालय हैं जहां नाम मात्र के छात्र होने पर भी दो या तीन शिक्षक पदस्थ हैं। कई महत्वकांक्षी शिक्षकों की नियुक्ति कहीं ग्रामीण क्षेत्र में हैं, लेकिन साहब के आगे पीछे घूमकर अपनी प्रतिनियुक्ति जिला मुख्यालय अथवा नजदीकी ग्रामीण क्षेत्रों में करा ली हैं। जो सिर्फ और सिर्फ साहब की जी हुजूरी में लगे रहते हैं तथा विद्यालय जाने में अपनी तौहीन समझते हैं। जो इस मुहावरे को चरितार्थ करता नजर आता हैं कि सैंया भए कोतवाल अब डर कायका।
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मूल कार्य से भटक गए हैं सीएसी और बीएसी
शिक्षक से सीएससी व बीएसी बने शिक्षक इन दिनों अपने मूलकार्य से भटकर कर अफसर शाही झाड़ने में लगे हुए हैं। जबकि इनका मुख्य कार्य जिस विद्यालय में पदस्थ हैं वहां शिक्षण कार्य करने के साथ-साथ इनके अधीनस्थ आने वाले विद्यालयों में पहुंचकर विषय बार आ रही कठिनाईयों को दूर कर उन्हें सरलीकरण करके बच्चों को शिक्षा से अवगत कराना हैं साथ ही जो शिक्षक को परेशानी आ रही हैं उसकी समस्या का भी समाधान करना होता हैं। लेकिन सीएसी व बीएसी द्वारा शासकीय नियमानुसार न चलते हुए सिर्फ विद्यालयों के निरीक्षण के नाम पर वहां पर पदस्थ शिक्षकों से अवैध रूप से बसूली करना ही इनका मूल उद्देश्य बन गया हैं। जिससे एक ओर तो शिक्षा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हो पा रहा हैं वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में पदस्थ सीधे साधे शिक्षकों को वे बजह की आर्थिक क्षति उठानी पढ़ रही हैं।
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पद स्थापना बाले विद्यालय से रहते हैं नदारद
सीएसी व बीएसी बने शिक्षक जिस विद्यालय में पदस्थ होते हैं वहां पर केवल हस्ताक्षर करने के लिए जाते हैं इसके बाद स्कूल निरीक्षण के नाम की कहकर वहां निकल जाते हैं और दिन भर गायब रहते हैं इन्हें बच्चों की शिक्षा से कोई लेना देना नहीं रहता हैं। इन शिक्षकों को सिर्फ और सिर्फ अफसरशाही झाड़ने के अलावा और कोई कार्य नहीं रहता हैं। अधिकारियों द्वारा जानकारी मांगी जाने पर उन्हें भी गुमराह कर दिया जाता हैं अथवा इनके द्वारा बसूल की जाने वाली अवैध धनराशि में से एक हिस्सा वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचा दिया जाता हैं। जिसकी बजह से वरिष्ठ अधिकारी भी इनके विरूद्ध मुंह खोलने को तैयार नहीं होते।
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बिना कमाण्डर के ही चल रहा हैं शिक्षा विभाग
देश का भविष्य कहे जाने वाले छात्र छात्राओं के भविष्य के प्रति जिला प्रशासन व शिक्षा विभाग कितना गंभीर हैं जो इस तथ्य से उजागर होता हैं कि जिले में जिला शिक्षा अधिकारी जैसा महत्वपूर्ण पद लगभग छह माहों तथा जिला समन्वयक परियोजना अधिकारी का पद लगभग तीन माह से खाली पड़े हैं। लेकिन जिले के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा शिक्षा विभाग का प्रभार डिप्टी कलेक्टर को दे रखा हैं। जिसकी बजह से शिक्षा विभाग के कई महत्वपूर्ण कार्य रूके हुए हैं। वहीं डीपीसी की कुर्सी भी लम्बे समय से रिक्त पड़ी हुई हैं। जिसकी बजह से जिले में संचालित विभिन्न विद्यालयों में शिक्षण कार्य की स्थिति भगवान भरोसे चल रही हैं।
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