संसार में बहुतायत चीजें परिवर्तनशील है जो किसी भी प्रकार की सुनियोजित व्यवस्था से भी नहीं बदली जा सकती हैं और उसके बाद भी तर्क दिया जाता है कि संसार परिवर्तनशील है ।ठीक उसी प्रकार से धरती पर कुछ ऐसे राष्ट्र भी हैं जिनकी संस्कृति परंपराए मृत्युंजय है ।जिसके सत्य को झूठलाया नहीं जा सकता क्योंकि ऐसे राष्ट्र विश्व पटल पर आड़ी-तिरछी रेखाएं घटा बढ़ाकर निर्मित नहीं हुए हैं बल्कि वह अंतर्चक्षु के आत्मज्ञान से विश्व के संपूर्ण मानव जाति को आलोकित किए हुए हैं साथ ही वह राष्ट्र अपने ज्ञान के दम पर और अपनी प्राचीन संस्कृति की वैश्विक विस्तार से सभी प्राणियों में सद्भाव जैसी वॄति का सदाचरण करने का आग्रह करते हैं तब जाकर दुनिया के इतिहास में मृत्युंजय राष्ट्र के रूप में जाने जाते हैं ।ऐसा ही मृत्युंजय राष्ट्र भारत है जिसने सदियों से अमृत पान करके विश्व के शिखर पर अमरता को प्राप्त किया है किसी भी राष्ट्र को शिखर ता के शीर्ष पर पहुंचने में 2-4 सदी नहीं बल्कि सैकड़ों- हजारों पीढ़ियों को साधना के पथ पर मुरझाना पड़ता है। ऐसे ही ऋषि तुल्य साधक परंपरा के वाहक इस राष्ट्र के आराधक हम सभी हिंदू समाज के आदर्श मानवीय जीवन की मर्यादा का पूर्णता से पालन करने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम "भगवान श्री राम" हम सब के आराध्य हैं जिनका जन्म इसी भारत माता के आंचल की छांव में तथा इक्ष्वाकु वंश के प्रतापी राजा दशरथ की राजधानी अयोध्या के महल में हुआ था। इसके हजारों वर्ष पुराने शास्त्रों में भी उल्लेख है इतना ही नहीं तो अखिल विश्व को भी इस बात का समूल ज्ञान है कि राम अयोध्या में ही पैदा हुए थे, यह ठीक उसी प्रकार से सत्य है कि सूरज पूरब से उदित होता है और पश्चिम में अस्त होता है, जिस प्रकार चांद में चांदनी होती है ,जिस प्रकार कुरान से इस्लाम( मोहम्मद पैगंबर )और बाइबल से ईसाइयत (ईसा मसीह )हैं,ठीक उसी प्रकार हिंदू शास्त्रों में भगवान "श्रीराम का "प्राचीन इतिहास है। जैसे मक्का मदीना इस्लाम और मोहम्मद पैगंबर से प्रचलित है , फिलिस्तीन का बेथलहम शहर ईसाइयत ईसा मसीह के लिए प्रचलित है वैसे ही अयोध्या भी हिंदू शास्त्रों के अनुसार श्री राम भगवान के लिए विश्व प्रसिद्ध है। आखिर इसमें कैसा विवाद ?विवाद का विषय क्या है? इस राष्ट्र का बच्चा-बच्चा जानता है कि चाहे वह किसी भी जाति संप्रदाय का हो ! राम अयोध्या में जन्मे थे उनकी जन्म भूमि अयोध्या ही है ।जब यह सर्वविदित विषय है कि विदेशी लुटेरा, कबिलाई मुगल शासक बर्बर बाबर के सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में राम मंदिर का विध्वंस करके एक गैर कानूनी ढांचा का निर्माण कराया था जिसका विरोध समकालीन राजा संतों एवं साधारण जनता ने भी अनवरत किया था और अंत में इतना ही नहीं तो सैकड़ों बार के संघर्ष में हजारों राम भक्त जन्मभूमि के लिए शहीद हो गए तब जाकर हिंदू समाज के प्रबल ज्वार से यह असंवैधानिक ढांचा को 6 दिसंबर 1992 को विध्वंस कर कर्बला में शांत किया गया। ऐसे विश्व पटल पर ख्याति प्राप्त भगवान श्री राम की जन्मभूमि पर विवाद करना एक वर्ग विशेष समुदाय के लिए हठधर्मिता से ज्यादा कुछ भी नहीं है इस नाजायज मांग से समाज में आक्रोष और घृणा ही व्याप्त होगी । जिसका सामूहिक परिणाम अति भयानक और विस्मयकारी होगा। भगवान श्री राम एवं उनकी जन्म भूमि किसी भी दृष्टि से विवाद का विषय नहीं है। विश्व के किसी भी अन्य मत पंथो में ऐसा कहीं भी कोई भी विवाद दिखाई नहीं देता, फिर भारत में ऐसा क्यों है? तो इसका स्वभाविक उत्तर यही है कि इसके पीछे कोई साजिश है या तो कोई राजनीतिक षड्यंत्र है! ऐसा करना किसी भी समुदाय विशेष एवं राजनैतिक दल के लिए शुभ संकेत नहीं है, ऐसा करके वह किसी और का नहीं बल्कि अपने वजूद एवं आंशिक अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हैं यह भविष्य के गर्भ में पूर्व सुनिश्चित है कि हिंदू समाज के प्रखर प्रतिशोध तथा प्रबल प्रतिरोध के सामने कभी कोई टिक नहीं पायेगा बल्कि उसका पूर्ण विनाश एवं सामूहिक सर्वनाश ही हुआ है ऐसे हमारे हिंदू धर्म शास्त्रों में उल्लेखित है रामायणऔर श्रीमद् भागवत गीता इसके जीवंत साक्ष्य हैं ! कौरवों के पूर्ण विनाश का कारण अनैतिक विचारों का अतिक्रमण अर्थात झूठ ही था और रावण कुल के सर्व संघार के पीछे भी यही अनैतिक आचरण था। राम के अस्तित्व को झूठ लाने वाले राम जन्मभूमि पर असंवैधानिक हक का हलफनामा पेश करने वाले या तो हिंदुओं के गौरवशाली अतीत को नहीं समझ पाए या नहीं तो वह हिंदुओं के पुरुषार्थ के परिणाम से परिचित नहीं हो पाए, यह वही हिंदू धर्म है जो विदेशी लुटेरे आतताइयों के पांव उखाड़ दिए ,यही नहीं तो 1857 की एक सामूहिक सशस्त्र क्रांति ने अंग्रेजों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया, साथ ही यूनान का तथाकथित दिग्विजयी सिकंदर (अलेक्जेंडर )भारत भूमि से जिंदा वापस बेबी लोन नहीं पहुंच पाया। इस बात का भय रामऔर राम जन्म भूमि के विरोधियों के मन में भी सतत बना रहना चाहिए। एक बात हम हिंदू मतावलंबीयो को ठीक प्रकार से समझ लेना चाहिए --कि राम कोई फरिश्ता नहीं है और नहीं कोई सूली चढ़े अपराधी हैं ।राम तो मानवीय जीवन की मर्यादा का नाम है, राम अजेय हैं ,पराजय नहीं ,राम व्यापक हैं ,संकीर्ण नहीं, राम समष्टि है, व्यष्टि नहीं, राम नाम सत्य है , झूठ नहीं ,अरे राम तो निर्विवाद है , विवाद नहीं , समाधान का नाम राम है, व्यवधान का नहीं, ऐसे सद्गुणी राम विवाद का विषय नहीं स्वीकृति का विषय है? यह बहस का मुद्दा नहीं है बल्कि राष्ट्रीय चिंतन का मुद्दा है? तब हम राम मंदिर के विषय को लेकर राम पर विश्वास क्यों नहीं करते? हिंदू समाज यह समझ ले कि जैसे वह भारत माता के कलेजे का घाव बाबरी ढांचा का विध्वंस हिंदू समाज की सामूहिक शक्ति से किया था ठीक उसी प्रकार से हिंदू समाज की जागृत किंतु संगठित शक्ति से ही भगवान"" श्री राम"" के मंदिर का निर्माण भी करेगा क्यों कि विध्वंस की कोख में ही निर्माण निहित होता है! ऐसा हम सबको विश्वास रखना चाहिए""""""""". एस शंकर अनुरागी ।।""""""""
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