सरस्वती विद्यापीठ आवासीय विद्यालय में चन्देरी के युद्ध और रानी मणिमाला के जौहर पर व्याख्यान*
शिवपुरी- सरस्वती विद्यापीठ आवासीय विद्यालय में आज चन्देरी के जौहर पर व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें विद्यालय के प्राचार्य श्री पवन शर्मा ने मध्यप्रदेश के अशोकनगर के चन्देरी में वीरांगना रानी मणिमाला के साथ 1600 क्षत्राणियों के जौहर पर विस्तृत जानकारी से भैयाओं को अवगत कराया ।
उन्होंने चन्देरी के जौहर पर बताया कि सुबह होने वाली थी चारों ओर शान्ती थी सूर्य उदय के साथ ही अचानक रणवाद्य बजने लगे कीर्तिदुर्ग के प्रहरी सजग हो गए देखने पर उत्तर दिशा से धूल का बवंडर चन्देरी की ओर बढ़ा चला आ रहा था महाराजा मेदिनीराय ने चारों ओर निरीक्षण किया तो ज्ञात हुआ कि चन्द्रगिरि (वर्तमान चन्देरी नगरी) को बाबर की तोपों से सज्जित सेना ने चारों ओर से घेर लिया है तभी एक सैनिक ने आकर महाराज मेदिनीराय को सूचना दी कि तुर्क सैनिक बाबर का पत्र लेकर आया है। पत्र के अनुसार- "तुम राणासांगा की मित्रता को त्यागकर मेरे गुलाम बन जाओ। मैं तुम्हें एक दिन का अवसर देता हूँ, इससे ज्यादा रियायत नहीं दूगाँ। खानवा के युद्ध में तुम देख चुके हो। समय रहते समझ जाना काबलियत की निशानी है। अब अपनी अक्ल से काम लेना अपनी औकात को भी नजर अंदाज न करना।"
इस युद्ध की सूचना राणासांगा को भेजी जा चुकी थी, तभी दूसरा सैनिक राणासांगा (महाराज संग्रामसिंह) का पत्र लेकर आया। पत्र को पढ़कर ज्ञात हुआ कि राणासांगा इस युद्ध में भाग नहीं ले पायेंगे। क्योंकि राणासांगा का स्वर्गवास हो चुका था। राणासांगा ने अपने अंतिम पत्र में मेदिनीराय से इस युद्ध में भाग न ले पाने की क्षमा याचना लिखी थी। पत्र को पढ़कर भाव विभोर राणासांगा के मानस पुत्र मेदिनीराय ने संकल्प लिया -
" हे धर्म पिता आपका मानस पुत्र रक्त की सरिता मं स्नान कर तुर्कों के रक्त को अंजुली में भरकर आपका तर्पण करेगा। उसी से आपकी आत्मा तृप्त होगी।"
तभी बाबर के विशेष दूत जो पत्र लेकर आये थे उन्होंने जबाव माँगा। तो मेदिनीराय ने कहा -
"कोट नवै, पर्वत नवै, माथौ नवाये न नवै।
माथौ सन जू को जब नवै, जब साजन आये द्वार।।"
हम क्षत्रिय हैं........ भारत के इतिहास में क्षत्रिय भेंट नहीं लेते हैं , फिर सर्मपण क्या होता है। यही हमारा इतिहास है।
मेदिनीराय महारानी मणिमाला से विदा लेने आते हैं। तब महारानी का भाव विभोर जबाव - संसार में भारतीय नारी के सुहाग को मिटाने वाली शक्ति कौन-सी है हाँ इतना अवश्य है कि हमारा आधा अंग (महाराज मेदिनीराय) युद्ध की ओर जा रहा है। यदि कहीं वह रणचण्डी का प्रिय हो जाता है (अर्थात् महाराज वीरगति को प्राप्त होते हैं) तो अबिलम्ब यह दूसरा अंग (महारानी मणिमाला) भी अग्निमार्ग से अपने पथ से अपने आधे अंग से जा मिलेगा।
महारानी ने सैनिकों को संबोधित किया - बन्धुओं, पराधीनता के राज्य का यश, वैभव, हैय और कलंक की कालिमा में लिपटे सुख हैं। क्षणिक सुख के लिए हम अपनी जाति, धर्म और देश की प्रतिष्ठा को बंधक नहीं बना सकते। जीवन-मरण तो ईश्वर के साथ है, हम उसे नहीं रोक सकते। जब मरना निश्चित है तो मरने पर भी अमरपद मिल सके। ऐसी मौत तो मातृभूमि के लिए उत्सर्ग करने से ही मिलती है तो आओ चलें महाकाल के चरणों में अमरपद प्राप्त करें।
अब क्षत्रिय और तुर्की दोनों सेनाएँ आमने-सामने, हर-हर महादेव के जय घोष के साथ क्षत्रिय प्राणों को भूलकर शरीर की ममता को त्याग मौत का खुला आलिंगन करने के लिए मचल कर तुर्की सेना पर अूट पड़े। भले ही राजपूत सेना का संख्या बल कम था पर पहले ही हमले में बाबर की सेना की अग्रिम पंक्ति के सैनिक मारे गये। बाबर के सेनापति ने सैनिकों को बहुत उकसाया, साहस दिलाया लेकिन तुर्की सैनिक पीछे हटने लगे।
इस युद्ध में बुन्देलखण्ड के राव, सामंत और लडाकू वीर क्षत्रिय युद्ध के आमंत्रण पर स्वेच्छा से मातृभूमि पर प्राणोत्सर्ग करने आ पहुँचे। महाराज मेदिनीराय ने हुँकार भरते हुए माँ चामुण्ड़ा का जयकारा लगाया। क्षत्रिय सेना वीरता और बलिदान के उभार पर आ गई और तुर्की सेना में हाहाकार मच गया। पानीपत और खानवा के युद्ध का विजेता बाबर भी क्षत्रियों क विकट युद्ध से भयभीत हो गया। इस विपरीत परिस्थिति को देख वह पीछे हट गया और खच्चर की गाड़ियों पर लदी तोपों को आगे बढ़ा दिया। बाबर ने घुड़सवारों को दांये-बायें से आक्रमण करने का हुक्म दिया। मानो भेड़िये सिंहों को घेरने की कोशिश कर रहे हों। युद्ध के नवीन आक्रमण से सिंहों की गति अवरुद्ध हो गई। तोपों के सामने क्षत्रियों की सेना का यह प्रथम युद्ध था। इस प्रकार मेदिनीराय की आधी सेना ने तुर्कों की चौगुनी सेना को मारकर वीरगति प्राप्त की।
उसी अर्धरात्रि में हाँफते हुए मेदिनीराय के सेनापति ने सूचना दी कि अहमद खाँ ने नगर का द्वार घोल दिया और बाबर की सेना नगर में प्रवेश कर गई है। मेदिनीराय झटके के साथ उठे और पीछे मुड़कर बस इतना कहा विदा . . . . अंतिम विदा मणि . . . और बाहर निकल गए। महारानी कर्त्तव्यविमूढ़ होकर देखती रही।
महाराज मेदिनीराय ने नगर के बीच में आकर शंखध्वनि का उद्घोष किया। हर-हर महादेव के घोष के साथ क्षत्रिय तुर्कों पर टूट पड़े। तिल-तिल बढ़ना अब तुर्कों के लिए मौत का खुला खेल था। इस परिस्थिति से घबरा कर बाबर ने पुनः तोपों को चलाने का हुक्म दिया। तोपों को रोकने के लिए मेदिनीराय बढ़े तो बढ़ते ही रहे। अब चन्देरी नगर के आकाश में चारों ओर धुआ और धूल के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। दोनों ओर की सेनाओं में अंधाधुंध तलवारे चल रहीं थी।
बाबर की सेना ने नगर में आग, लूट और हत्या का तांडव करना प्रारम्भ कर दिया। बाबरनामा के अनुसार चन्देरी नगर में हुए नरसंहार का आकलन करने के लिए बाबर ने मरे हुए राजपूतों के सिर कटवाकर उनकी मीनार (टीला) बनवाया और उस पर अपना झण्ड़ा गाढ़ दिया।
मेदिनीराय जैसे ही होश में आये तो दुर्ग से नरमुण्ड़ों पर गढ़ा तुर्कों का ध्वज देखकर चीखकर अपने आपको धिक्कारने लगा। मेरे रहते मेरे नगर पर तुर्कध्वज फहरा रहा है............तभी महारानी मणिमाला ने धनुष उठाकर उस ध्वज के चिथड़े उड़ा दिये।
महाराज मेदिनीराय ने खड़े होकर कहा अब अंतिम युद्ध होगा। जो अपनी स्वेच्छा से युद्ध में चलना चाहते हैं वह केशरिया धारण कर लें तथा जो युद्ध में नहीं जाना चाहते वह दुर्ग से बाहर निकल जाये।
दुर्ग से निकलने की व्यवस्था कर दी गई है। महाराज अंतिम युद्ध पर जाने के लिए चन्द्रगिरि के दुर्ग पर मरणोत्सव पर्व की तैयारियाँ शुरू हो गई। महारानी ने आकर कहा कि महाराज को केशरिया पहना कर मृत्यु वरण के लिए तैयार किया और स्वयं के लिए आदेश माँगा कि मुझे भी आदेश दे दीजिए कि मैं जोहर की अग्नि जला आऊँ जो कभी न बुझे।
इस समय के युद्ध को बाबरनामा में इस प्रकार व्यक्त किया गया है - कि हिन्दू द्वार खोलकर नंगे होकर हम पर टूट पड़े। अंतिम युद्ध लड़ा जाने लगा। मुख्य द्वार से (हवापौर दरवाजा) से रक्त की सरिता वहने लगी, लाशों के ढेर लग गये। युद्ध चलता रहा और मेदिनीराय अपने वीरों के साथ तुर्कों के सिर काटते हुए वीरगति को प्राप्त हो गये। फिर चारों ओर सन्नाटा छा गया। दुर्ग का द्वार खुला था फिर भी द्वार अंदर आने का साहस शत्रु सेना नहीं जुटा पा रही थी। बाबर जिसके साहस की दन्त कथाएँ सम्पूर्ण एशिया में प्रचलित थीं। वह भी चन्द्रगिरि के दुर्ग में जाने से घबरा रहा था। दुर्ग के प्रथम द्वार पर आकर बाबर के मुँह से घबरा कर निकल गया . . . ओह . . खूनी दरवाजा. . . ।
संभवतः इसी समय से वर्तमान फुहारी वाला दरवाजा खूनी दरवाजे के नाम से विख्यात् हो गया। अंतिम बचे प्रहरी ने महारानी मणिमाला के पास आकर सूचना दी कि महाराज वीरगति को प्राप्त हो गये। मणिमाला शिव मन्दिर चली गई (वर्तमान गिलउआ ताल पर) पूजन के उपरांत बाहर आईं तो लगभग 1500 क्षत्राणियाँ खड़ी थीं। तब महारानी ने उनसे कहा - "हम प्रत्येक परिस्थिति में जीते हैं, लेकिन पति से अलग होकर हम नहीं जी सकते। पति के उठते पाँव के चिन्हों पर हमें भी पाँव रखना है . . . । हमारे प्राण प्रिय से हमारा संबंध मात्र शरीर का नहीं है वरन् आत्मा का संबंध है। उसी आत्मानुभूति से प्रेरित होकर हम आत्मा के मिलन के लिए सुहाग की अमरता पाने पवित्र अग्नि में जा रहे हैं। मेरे जीवन में ही क्या युगों-युगों से भारतीय नारी के जीवन में आग और सुहाग कोई अलग वस्तु नहीं रही है। जब तक इस भारत में इस आग और सुहाग के महत्व को नारी जानती और मानती रहेगी, तब तक एक क्या हजारों बाबर भी एक साथ मिलकर भारत की पावनता और संस्कृति को नहीं जीत सकते। भले ही कुछ समय के लिए निस्तेज हो जायें, छुपी हुई आग का दबा हुआ बीज फिर से फूटेगा अवश्य फूटेगा।" फिर सुहागन मणिमाला के संकेत पर वर्तमान खूनी तलैया के किनारे विशाल चिता में अग्नि प्रज्वलित कर दी गई। कुछ ही क्षणों में लपटें आकाश को छूनें लगी और महारानी सहित लगभग 1500 वीरांगनाओं ने अपने जीवन को होमकर दिया। देखते ही देखते सम्पूर्ण दुर्ग आग का गोला बन चुका था। इस चिता की ज्वालाएँ चन्द्रगिरि से लगभग 15-15 कोस दूर देखी जा सकतीं थीं। जैसे ही बाबर की सेना ने दुर्ग में प्रवेश किया तो शेष सैनिकों ने मोर्चा संभालकर वीरता से युद्ध किया और वीरगति प्राप्त की।
अब बाबर जलती हुई चिता को अहमद खाँ के साथ निहार रहा था। जीवित जलती कोमलांगियों को देख बेचौन हो गया। उसका कठोर हृदय भी पीडा से कराह उठा। उसी समय चिता के भीतर से एक सनसनाता तीर आया और बाबर की पगड़ी में लगा और वह जमीन पर गिर गई। यह देख बाबर की सेना में आतंक छा गया। बाबर के सैनिक दौड़कर चिता के पास पहुँचे तो देखा कि महारानी मणिमाला तीर चलाकर धनुष को कंधे पर ले रहीं थीं। बाबर ठगा सा रह गया। भग्न ध्वस्त दुर्ग की सूबेदारी अहमद खाँ को सौपकर तुरंत दिल्ली की ओर चला गया। चन्देरी का जौहर महारानी मणिमाला की वीरता और सतित्व की गाथा है। फरिस्ता के अनुसार इस युद्ध में पाँच-छः हजार राजपूत वीर मारे गए थे। डॉ. रिजवी द्वारा लिखित बाबरनामा पृ. 441 मे लिखते हैं कि - ज्ञात होता है कि मेदिनीराय इस युद्ध में नहीं मरे, वरन् मुगलों (बाबर) के द्वारा बन्दी बना लिए गए। बाबर ने पहले उन्हें बलात् मुसलमान बनाया और फिर उनकी हत्या करा दी।
"पग पग पर हुए जो लाल न्यौछाबर।
जा बजा से लाल भई, जा चन्देरी की माटी।।"
इस प्रकार के कार्यक्रमों से हमें हमारी संस्कृति एवं वीरांगनाओं के त्याग एवं बलिदान से हम सभी परिचित हो सके साथ ही अपने गौरवशाली भारत को समझ सकें ।
इस अवसर पर समस्त भैया एवं आचार्य परिवार उपस्थित रहा ।
0 Comments