_*पिता के कत्लखाने में गायों को कटते देख बेटा बना गौ-पालक, अब सरकार ने दिया पद्मश्री
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_*जब सरकारी महकमा पद्मश्री मिलने की खबर को लेकर गौ-सेवक शब्बीर मामू के पास पहुंचा तब भी वह गौशाला में थे.*_
_*बीड: महाराष्ट्र के छोटे से कस्बे में रहने वाले शेख शब्बीर मामू* तब अचानक सेलिब्रिटी बन गए जब 25 जनवरी की रात उनका *नाम पद्म पुरस्कार की सूची* में आया. उन्हें *गौ-सेवा के लिए पद्मश्री से नवाज़ा* गया है. शब्बीर को यह भी पता नहीं कि उन्हें *कौन-सा पुरस्कार मिला* है. कभी उन्होंने इसके बारे में सुना नहीं था. उन्होंने सिर्फ बिना *किसी मेहताने के गौ-सेवा* की है. उनके बेटे और बहुएं भी अब गौसेवा में लगे हैं. *गौवंश को बचाने का काम पिछले 50 सालों* से कर रहे हैं जिसके लिए अपनी 40 एकड़ जमीन पर वह कोई खेतीबाड़ी नहीं करते, सिर्फ चारा उगाते हैं और उससे गौवंश का पालन-पोषण करते हैं._
_*10 साल की उम्र में गाय कटते देखीं*_
_शेख शब्बीर ने बताया कि उनके पिता का *कत्लखाना* था. 10 साल की उम्र में उन्होंने गायों को कटते हुए देखा था. *इस घटना का उन पर काफी गहरा असर* हुआ. किसी प्राणी को ऐसे तड़पते हुए मरता देख उनको बुरा लगा. उन्होंने पिता से कत्तलखाना बंद करवाया और खुद 10 गायें लेकर आए और उनका पालन-पोषण करने लगे. उसके बाद *अब तक 50 सालों में उनके पास 176 गाय और बैल* हैं जिसको वह खुद पालते हैं. वहीं, गोवंश को खिलाने के लिए *अपनी पुश्तैनी 50 एकड़ जमीन पर चारा* उगाते हैं._
_*शेख शब्बीर मामू* के नाम से वह इस इलाके में पहचाने जाते हैं. जब किसी गाय को बच्चा होता है तो उसका पालन पोषण भी शब्बीर मामू ही करते हैं._
_*गोबर से आमदनी*_
_*शब्बीर मामू इन गायों का गोबर बेचकर अपना घर चलाते हैं जिसके लिए उन्हें सालाना 60 से 70 हजार रुपये मिलते हैं. कभी किसी बैल को बेचने की नौबत भी आती है तो वह खरीददार से यह लिखकर लेते हैं कि अगर बैल बीमार पड़ता है या फिर काम करने लायक नहीं रहता तो वह वापस उनके पास लाएंगे. उसकी जितनी कीमत होगी, वह चुका दी जाएगी लेकिन उसे कत्लखाने में ना भेजा जाए.*_
_*आज शब्बीर मामू के पास 175 से भी जादा मवेशी हैं. जिनका पालनपोषण करना एक बडा काम है. लेकीन गौ-सेवा का व्रत लेने वाले शब्बीर मामू का कहना है कि जहां चाह होती है वहां राह तो बिल्कुल निकलती ही है. कई लोगों ने उनके मदद की है. कई लोगों ने उनको सहारा दिया है.*_
_*मोबाइल फोन इस्तेमाल नहीं करते*_
_जब *सरकारी महकमा पद्मश्री मिलने की खबर को लेकर उनके पास* पहुंचा तब भी वह तबेले में थे. *मोबाइल फोन इस्तेमाल नहीं* करते तो उनके आने तक सरकारी अफसरों को इंतजार करना पडा. शब्बीर कहते हैं कि कौन-सा अवार्ड मिला है यह पता नहीं. न ही मैंने कभी किसी अवार्ड के लिए काम किया था._
_*गौ-सेवा में ही सुकून*_
_शब्बीर की अगली पीढ़ी यानी उनके दो बच्चे और बहुएं भी अब उनका हाथ बटाते हैं. वह भी शब्बीर के राह पर ही चल रहे हैं. *शब्बीर के बेटे कहते है कि किसी भी प्राणी की सेवा बहुत पुण्य का काम है*._ _*हमने पिता से यह सीखा है कि गौ-सेवा में ही सुकून है. हम पिता का यह काम आगे भी जारी* रखेंगे._
*लक्ष्मीकांत रुईकर* की रिपोर्ट के आधार पर समाचार प्रस्तुति
*_◆ राजेश जैन भिलाई ◆_*
_◆सभी अहिंसा प्रेमियों से निवेदन इस समाचार को सभी समूहों में प्रेषित करें
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