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राजनेताओं में किसी को खुशी को किसी को गम दे गया वर्ष 2018 

राजनेताओं में किसी को खुशी को किसी को गम दे गया वर्ष 2018 


-राजकुमार शर्मा-


शिवपुरी ब्यूरो।  विगत 15 वर्षों से सत्ता में रही भाजपा की सरकार के लिए वर्ष 2018 शुभ नहीं रहा। गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली अप्रत्याशित जीत से कांग्रेसी कार्यकर्ता जहां वे खुशी से झूम रहे हैं वहीं भाजपा के सत्ता से बाहर होने पर गमगीन माहौल नजर आ रहा हैं। यूं तो मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को कड़ी टक्कर दी लेकिन नम्बरों में भाजपा मात खा गई। वर्ष 2018 को राजनेता किस तरह याद रखेंगे, जिसमें आशा के विपरीत परिणाम निकले, जिसकी स्वयं राजनेताओं को भी नहीं थी। यह तय माना जा रहा था कि भाजपा को कुछ सीटों का नुकसान हो सकता हैं लेकिन यह किसी को उम्मीद भी नहीं थी कि वर्ष 2018 में भाजपा सत्ता से बाहर हो जाएगा और प्रदेश में कांग्रेस सत्तासीन हो जाएगी। लेकिन इतना सबकुछ होने के बाद भी शिवपुरी विधानसभा से रिकार्ड मतों से जीत दर्ज कराकर यशोधरा राजे सिंधिया सर्वमान्य नेता के रूप में उभरी हैं। 


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महेन्द्र यादव नहीं भुला पायेंगे बीता साल 


वर्ष 2018 शुरू आत से महेन्द्र यादव के लिए खुशी तथा गम लेकर आया था जिसके तहत उनके पिता पूर्व विधायक कोलारस का आकस्मिक निधन हो गया वहीं उनके स्थान पर कांग्रेस ने उनके पुत्र महेन्द्र यादव को अपना प्रत्याशी घोषित किया। कोलारस विधानसभा क्षेत्र में संपन्न हुए उप चुनाव में महेन्द्र यादव ने अच्छे खासे मतों से परास्त किया और विजयीश्री हांसिल की। वहीं वर्ष 2018 में विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे।  लेकिन जाते-जाते वर्ष 2018 उन्हें गम देकर चला गया। वर्ष 2018 को महेन्द्र यादव हमेशा याद रखेंगे। जिसके तहत वे विधायक चुने गए और पराजित हो गए।


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वीरेन्द्र, जसवंत, सुरेश को यादगार रहे वर्ष 2018


नवम्बर 2018 में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में वर्षोर्ं से संघर्ष कर रहे राजनेताओं को हमेशा याद रहेगा। किसान कांग्रेस के जिलाध्यक्ष सुरेश राठखेड़ा, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जसवंत जाटव, पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में अपने-अपने दलों के लिए कार्य कर रहे थे। कांग्रेस नेता सुरेश राठखेड़ा व जसवंत जाटव ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि वे अपने क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हो पायेंगे,इसके लिए वह अनवरत रूप से संघर्ष कर रहे थे लेकिन उन्हें विधानसभा तक पहुंचने का मौका नहीं मिल पा रहा था। वर्ष 2018 में संपन्न हुए चुनावों में जैसे ही उन्हें राजनैतिक दलों ने मौका दिया तो उपरोक्त राजनेताओं ने विजयीश्री हांसिल कर विधानसभा तक पहुंचने में सफलता हांसिल की हैं। जो उन्हें हमेशा ही यादगार रहेगा। 


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पूर्व विधायक भारती और शकुंतला को दर्द दे गया बीता वर्ष


जिले की पोहरी विधानसभा क्षेत्र विधायक प्रहलाद भारती व करैरा विधायक शकुंतला खटीक को बीता वर्ष शुभ नहीं रहा। विगत 10 वर्षोंे से पोहरी से विधायक रहे प्रहलाद भारती को गत विधानसभा चुनाव में शिकस्त का सामना करना पड़ा वहीं करैरा विधायक शकुंतला खटीक को कांग्रेस पार्टी ने जिताऊ उम्मीदवार न समझते हुए वहां से नए प्रत्याशी जसवंत जाटव पर अपना विश्वास जताते हुए उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया। जिन्होंने पार्टी उम्मीदों को बरकरार रखते हुए विजयीश्री हांसिल की लेकिन वर्ष 2018 जाते-जाते शकुंतला और प्रहलाद भारती गम दे गया।   


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भटकते रहे कुछ राजनेता


जिले की विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों से उम्मीदवार बनाए जाने की उम्मीद सजोये हुए कुछ राजनेता अपनी समूची राजनैतिक ताकत का उपयोग करने के बावजूद भी टिकिट हांसिल करने में ना कामयाब रहे। जिसमें कोलारस के पूर्व विधायक ओमप्रकाश खटीक, देवेन्द्र जैन, हरिवल्लभ शुक्ला, नरेन्द्र बिरथरे, राकेश गुप्ता, दिलीप मुदगल, आलोक बिंदल, जैसे कई नेता दोनों ही प्रमुख राजनैतिक दलों में अपनी-अपनी पहुंच का प्रयोग कर टिकिट हांसिल करने जुगत लगे रहे। लेकिन अंत तक उन्हें कुछ भी हाथ नहीं लगा। लेकिन पार्टी द्वारा राजनेताओं को तबज्जो न दिए जाने पर कुछ ने तो बगावती तेवर अपनाते हुए गत विधानसभा चुनाव में निर्दलीय तथा बसपा जैसी पार्टियों से हाथ मिलाकर राजनैतिक दलों के समीकरण ही बिगाड़ कर रख दिए, जिनमें करैरा के पूर्व विधायक रमेश प्रसाद खटीक एवं पोहरी से बसपा के उम्मीदवार कैलाश कुशवाह जो पूर्व में भाजपा से मंडी उपाध्यक्ष के पद तक पहुंचे थे। 


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