अयोध्या मामला: मोदी सरकार के इस स्टैंड के बाद सिर्फ 0.313 एकड़ जमीन पर अटक गया पूरा केस
अयोध्या विवाद को लेकर मोदी सरकार बड़ा दांव चलते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है. सरकार ने रिट पिटीशन दायर कर विवादित जमीन को छोड़कर बाकी जमीन यथास्थिति हटाने की मांग की है. उन्होंने इसे रामजन्म भूमि न्यास को लौटाने को कहा है. सरकार ने कोर्ट से कहा है कि विवाद सिर्फ 0.313 एकड़ जमीन पर ही है. बाकी जमीन पर कोई विवाद नहीं है, लिहाजा इस पर यथास्थिति बरकरार रखने की जरूरत नहीं है. बता दें सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीनसहित 67 एकड़ जमीन पर यथास्थिति बनाने को कहा था. लेकिन, केंद्र के इस स्टैंड के बाद अयोध्या में विवादित स्थल का मामला सिर्फ 0.313 एकड़ भूमि तक ही अटक कर रह गया है.
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दरअसल, 1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या अधिग्रहण एक्ट के तहत विवादित स्थल समेत आस-पास की करीब 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. सुप्रीम कोर्ट ने इसी पर यथास्थिति बनाए रखने की बात कही थी. इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट की नई बेंच मंगलवार को सुनवाई करने वाली थी, लेकिन जस्टिस एसए बोबडे के छुट्टी पर जाने के कारण सुनवाई टल गई.
सुप्रीम कोर्ट में अपील के बाद केंद्र ने कहा- 'हम विवादित जमीनों को नहीं छू रहे हैं. बीजेपी ने हमेशा कहा है कि मंदिर राम जन्मभूमि पर ही बनाया जाए, जो भी कानूनी रास्ता उसके लिए अपनाना पड़ेगा, हम अपनाएंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, 'जनता राम मंदिर बनते देखना चाहती है, लेकिन यह मामला कानूनी दायरे में है और रास्ता भी उसी के लिहाज से निकाला जाएगा.'
आइए जानते हैं क्या है विवादित जमीन का पूरा मामला:-
70 एकड़ जमीन केंद्र के पास
अयोध्या में विवादित जमीन के आस-पास करीब 70 एकड़ जमीन केंद्र सरकार के पास है. इसमें 2.77 एकड़ की जमीन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया था. विवाद अयोध्या में पूरा विवाद सिर्फ 0.313 एकड़ जमीन को लेकर है. क्योंकि यहीं पर विवादित ढांचा होने के दावा किया जाता है. साल 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने इस भूमि पर स्टे लगाया था. कोर्ट ने इस जमीन पर किसी भी तरह के निर्माण कार्य या पूजा या इबादत पर रोक लगाई हुई है.
केंद्र ने हिंदू पक्षकारों से की जमीन देने की अपील
सरकार ने हिंदू पक्षकारों को दी जमीन रामजन्म भूमि न्यास को देने की अपील की है. सरकार का कहना है कि विवादित 0.313 एकड़ जमीन पर प्रवेश व निकासी के लिए वह योजना तैयार कर देगी. सरकार के मुताबिक, जमीनी विवाद पर जो भी पक्ष केस जीतेगा, उसे 0.313 एकड़ जमीन पर जाने- आने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.
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क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला?
इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत से फैसला दिया था. कोर्ट ने कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांट दिया जाए. इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. शीर्ष अदालत ने 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट में यह केस पिछले 8 साल से पेंडिंग है.
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