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कहासुनी और कयासों की कहानी आज खत्म -निर्णायक हकीकत उगलने को तैयार मतपेटियां

कहासुनी और कयासों की कहानी आज खत्म


-निर्णायक हकीकत उगलने को तैयार मतपेटियां


-राजकुमार शर्मा-


शिवपुरी ब्यूरो। प्रदेश में सत्ताधारी दल सत्ता में वापिसी करेगा या प्रमुख विपक्षी दल उसे सत्ता से वेदखल करेगा! यह यक्ष प्रश्न है। जिसका जवाब राजनीति और प्रबुद्ध वर्ग माथापच्ची करके आज तक खोजते आए हैं, लेकिन परिणामों को लेकर स्थिति इतनी नाजुक है कि कोई भी राजनीतिक पंडित सीधा सपाट जवाब नहीं दे पा रहा है। मतदान के बाद  कहासुनी और कयासों में जो हार जीत का गणित आज तक आंकड़ों की शक्ल में प्रचारित हुआ उसकी कहानी रात के साथ बीत रागी होकर खत्म हो जाएगी। कल सुबह मतपेटियां निर्णायक आंकड़े उगलेंगी जो जनमत का प्रत्यक्ष प्रमाण बनकर राजनीतिज्ञों को आईना दिखा देगी। पूरे प्रदेश में उपरोक्त स्थिति से इतर हालात शिवपुरी जिले की पांच सीटों के भी नहीं है। यहां दोनों प्रमुख दलों में मुख्य मुकावला  सिर्फ तीन सीटों पर हैं। जिनमें शिवपुरी, कोलरस और पिछोर विधानसभा सीट शामिल हैं। करैरा में मुकावला चतुषकोणियें हैं तो पोहरी में मुकाबला त्रिकोणीय है। इन सीटों पर कई  क्षत्रप भी चुनावी मैदान में संघर्षरत हैं। जिनमें पिछोर विधानसभा से कई वार लगातार चुनाव जीते केपी सिंह के साथ पोहरी से दो बार चुनाव  जीत चुके प्रहलाद भारती साख भी दाव पर लगी है। शिवपुरी से तीन बार चुनाव जीत चुकी भाजपा प्रत्याशी यशोधरा राजे सिंधिया चौथीबार चुनाव जीतेंगी! इस तथ्य में बाजार और राजनैतिक हलकों में प्रचारित तौर पर संशय पैदा कर दिया गया हैं जबकि जो सच्चाई कल सामने आएगी वह संभावित तौर पर प्रचारकों के लिए मुंह चिड़ाने वाली साबित होगी। करैरा में मुख्य दलों में शामिल एक दल के तीसरे स्थान पर जाने की पुरजोर संभावना है और यही स्थिति पोहरी में भी हैं। कल कुछ गढ़ ध्वस्त हो जायेंगे। इस संभावना से भी कतई इन्कार नहीं किया जा सकता है। मतगणना और प्रत्येक गणना चक्र की वेहतर व्यवस्था जिला प्रशासन में बड़ी मुस्तैदी के साथ कर रही है। प्रत्येक गणना के बाद प्रमाण पत्र देने की बजह से परिणामों में कुछ घंटों का विलम्ब संभावित हैं। मतगणना स्थल पर शांति और व्यवस्था को लेकर प्रशासन ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। संभावित और आशंकित तथ्य यह भी है कि कल जब प्रदेश के रूझान आना शुरू होंगे तब सरकार बनने की स्थिति साफ होने के साथ-साथ मतगणना स्थल पर भी प्रमुख पार्टियों के प्रत्याशियों और उनके ऐजेटों के मनोभाव भी बदलेंगे। जो व्यवस्था को प्रभावित करने वाले तथ्य हो सकते हैं। इस आशंकित संभावना के साथ प्रशासन को अपनी अतिरिक्त तैयारी रखना एक समझदारी भरा कदम साबित हो सकता है।  

-...मायथोलॉजी में महाराज 


धर्म और अध्यात्म मानव जीवन से जुड़े सभी विषयों पर समान रूप से महत्वपूर्ण है। राजनीति भी इससे पृथक नहीं है मायथोलॉजी का प्रभाव निम्न तथ्य से समझा जा सकता है कि हिन्दू धर्म में रामायण और महाभारत दो ऐसे पवित्र ग्रंथ हैं जिनमें मानव जीवन से जुड़ी सभी समस्याओं का समाधान और उपलब्धियों का मार्ग प्रशस्त होता है। मायथोलॉजी में  शामिल मनु संहिता के अनुसार राजा और महाराजा मृत्यु लोक (पृथ्वी)में ईश्वर का प्रतिनिधि हैं। उपरोक्त दृष्टांत की राजनीतिक समीक्षा में यह कहा जा सकता हैं कि शिवपुरी विधानसभा से चुनाव लड़ रहीं यशोधरा राजे सिंधिया जो आज तक अपराजेय हैं। वह कल भी अपराजेय ही रहेंगी। उपरोक्त की सत्यता का प्रमाण निम्न तथ्य हो सकता है कि भयांकर विपरीत प्रचार के बावजूद बहुसंख्यक मतदाताओं की जुवान पर यह तथ्य पुरजोर प्रतिध्वनित हुआ है कि चाहे कुछ भी हो जीतेंगी तो महाराज ही। उनकी जीत पर सर्व स्वीकारोक्ति विरोधियों को भी यह कहने पर मजबूरन विवश करती है कि जीत भले ही जायें लेकिन जीत का अंतर कम होगा। 

-प्रचारित निष्कर्ष और नतीजे में एक के सात का भाव


सरकार किसकी आएगी! फला सीट से कौन जीतेगा? ऐसे कई प्रश्नों के जवाब के लिए जहां कई राजनीतिक विचारक और पंडित माथा पच्ची कर रहे हैं वहीं सट्टा बाजार भी दम से होमवर्क करके अपनी रेटें उछाल रहा है। जिन सवालों के प्रचारित निष्कर्ष सामने आ गए हैं उन पर सट्टा बाजार में कहीं समान रूप से बराबरी का दाव लग रहा है तो कहीं प्रचारित निष्कर्ष को निरूत्साहित करने के लिए सट्टा बाजार में भाव भी दिया जा रहा है। शिवपुरी विधानसभा सीट को लेकर सट्टा बाजार में सट्टा बराबरी का नहीं बल्कि एक के सात के भाव का है। सट्टा बाजार और प्रचारित निष्कर्ष से जुड़ा एक हास्यापद वाक्या यह है कि शिवपुरी में कांग्रेस प्रत्याशी की जीत के प्रचारित सत्य से सुखी उसके भाई ने एक समाचार पत्र के कार्यालय में निम्न प्रश्न पूछकर सनाका खींच दिया कि सब कह रहे हैं कि भैया चुनाव जीत रहे हैं लेकिन सट्टा बाजार तो भैया जीत पर एक के सात का भाव दे रहा है! तो फिर भैया जीत कैसे रहे हैं? इसके जवाब में गंभीर सामाजिक मौन छा गया। भैया के चले जाने के बाद सिर्फ ठहाके और अट्ठाहास ही गूंजे।  


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