25 साल बाद पोहरी में कांग्रेस को मिली सफलता.......
-पोहरी में कांग्रेस ने राठखेड़ा को टिकट देकर खेला था जोखिम भरा दाव, लेकिन मिली सफलता
शिवपुरी ब्यूरो। पोहरी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस को इस चुनाव में 25 साल बाद सफलता हांसिल हुई है। कांग्रेस ने अंतिम बार 1993 में यहां से विधानसभा चुनाव जीता था। जब कांग्रेस की उम्मीदवार श्रीमति बैजंती वर्मा ने भाजपा के निवर्तमान विधायक जगदीश वर्मा को पराजित किया था। उस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा ने धाकड़ उम्मीदवारों को टिकट दिया था। ठीक यहीं कहानी 2018 में भी दोहराई गई, जब भाजपा ने अपने निवर्तमान विधायक प्रहलाद भारती पर पुन: विश्वास व्यक्त करते हुए उम्मीदवार बनाया। वहीं कांग्रेस ने भी उनकी जाति के धाकड उम्मीदवार सुरेश राठखेड़ा को टिकट दे दिया और इस चुनाव में भी 1993 की कहानी दोहराई गई तथा कांग्रेस उम्मीदवार सुरेश राठखेड़ा को लगभग 8 हजार मतों से विजय हांसिल हुई। भाजपा उम्मीदवार प्रहलाद भारती तीसरे स्थान पर फिसल गए और दूसरे स्थान पर कब्जा बसपा उम्मीदवार कैलाश कुशवाह ने किया। इस चुनाव में खास बात यह भी रही कि पोहरी विधानसभा क्षेत्र का अभी तक जो इतिहास रहा है वहीं इतिहास इस चुनाव में भी दोहराया गया। इस विधानसभा क्षेत्र से या तो धाकड़ जाति का उम्मीदवार या ब्राह्मण जाति का उम्मीदवार चुनाव जीतता है लेकिन इस बार बसपा उम्मीदवार कैलाश कुशवाह भी जीत की दौड़ में थे। परंतु वह इस विधानसभा क्षेत्र में नया इतिहास बनाने में सफल नहीं रहे।
पोहरी विधानसभा क्षेत्र जब से अस्तित्व मेें आया है, तब से यहां से विधायक बनने का गौरव या तो धाकड़ उम्मीदवार या फिर ब्राह्मण उम्मीदवार ने प्राप्त किया है। परम्परा यह रही है कि यदि कांग्रेस या भाजपा में से एक पार्टी ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट देती है तो दूसरी पार्टी धाकड़ उम्मीदवार पर दाव लगाती है। इस विधानसभा क्षेत्र में धाकड़ मतदाताओं का वर्चस्व है और उनकी संख्या 40 हजार से अधिक हैं। जबकि ब्राह्मण उम्मीदवार सजातीय के साथ-साथ धाकड़ों के विरूद्ध अन्य जातियों के वोटों को एकत्रित कर मुकाबले में आ जाता है। इस चुनाव में भाजपा ने सबसे पहले यहां से दो बार से लगातार जीत रहे विधायक प्रहलाद भारती को उम्मीदवार बनाया। श्री भारती की उम्मीदवारी से संभावना बनी कि कांग्रेस शायद यहां से परम्परानुसार ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट दे। कांग्रेस में इस विधानसभा क्षेत्र के लिए ब्राह्मण उम्मीदवारों की कमी नहीं है। पूर्व विधायक हरिवल्लभ शुक्ला, गणेश गौतम, एनपी शर्मा, विजय शर्मा आदि टिकट की दौड में थे। लेकिन कांग्रेस ने परम्परा के विपरीत इस बार धाकड़ उम्मीदवार सुरेश राठखेड़ा को टिकट दे दिया। शायद कांग्रेस नेताओं के जेहन में 1993 का परिदृश्य था। यह एक जोखिम भरा दाव था। मुकाबले में दो-दो धाकड़ उम्मीदवार मैदान में उतर चुके थे। इस स्थिति का फायदा उठाते हुए बसपा ने भाजपा के बागी कैलाश कुशवाह को उम्मीदवार बना दिया। श्री कुशवाह के पक्ष में क्षेत्र के अधिकतर दोनों दलों के ब्राह्मण नेता एकजुट हो गए। जिससे ब्राह्मण मतों का कुशवाह के पक्ष में धु्रवीकरण होने की संभावना बढ गई। इस क्षेत्र में कुशवाह मतदाताओं की संख्या भी 15 हजार से अधिक है तथा पर्याप्त संख्या में दलित वोट हैं और इस आधार पर बसपा उम्मीदवार कैलाश कुशवाह की जीत की संभावना व्यक्त की जाने लगी थी। संभावना व्यक्त की जा रही थी कि धाकड़ मतों का 50-50 प्रतिशत धु्रवीकरण कांग्रेस प्रत्याशी सुरेश राठखेड़ा और भाजपा प्रत्याशी प्रहलाद भारती के पक्ष में होगा। यह गणित बसपा प्रत्याशी कैलाश कुशवाह की जीत के लिए पर्याप्त था। परंतु ऐसी स्थिति में अनुसूचित जाति और जनजाति के मतदाताओं ने कांग्रेस प्रत्याशी सुरेश राठखेड़ा को समर्थन देकर उनकी जीत सुनिश्चित कर दी।
-पोहरी में कांग्रेस ने राठखेड़ा को टिकट देकर खेला था जोखिम भरा दाव, लेकिन मिली सफलता
शिवपुरी ब्यूरो। पोहरी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस को इस चुनाव में 25 साल बाद सफलता हांसिल हुई है। कांग्रेस ने अंतिम बार 1993 में यहां से विधानसभा चुनाव जीता था। जब कांग्रेस की उम्मीदवार श्रीमति बैजंती वर्मा ने भाजपा के निवर्तमान विधायक जगदीश वर्मा को पराजित किया था। उस चुनाव में कांग्रेस और भाजपा ने धाकड़ उम्मीदवारों को टिकट दिया था। ठीक यहीं कहानी 2018 में भी दोहराई गई, जब भाजपा ने अपने निवर्तमान विधायक प्रहलाद भारती पर पुन: विश्वास व्यक्त करते हुए उम्मीदवार बनाया। वहीं कांग्रेस ने भी उनकी जाति के धाकड उम्मीदवार सुरेश राठखेड़ा को टिकट दे दिया और इस चुनाव में भी 1993 की कहानी दोहराई गई तथा कांग्रेस उम्मीदवार सुरेश राठखेड़ा को लगभग 8 हजार मतों से विजय हांसिल हुई। भाजपा उम्मीदवार प्रहलाद भारती तीसरे स्थान पर फिसल गए और दूसरे स्थान पर कब्जा बसपा उम्मीदवार कैलाश कुशवाह ने किया। इस चुनाव में खास बात यह भी रही कि पोहरी विधानसभा क्षेत्र का अभी तक जो इतिहास रहा है वहीं इतिहास इस चुनाव में भी दोहराया गया। इस विधानसभा क्षेत्र से या तो धाकड़ जाति का उम्मीदवार या ब्राह्मण जाति का उम्मीदवार चुनाव जीतता है लेकिन इस बार बसपा उम्मीदवार कैलाश कुशवाह भी जीत की दौड़ में थे। परंतु वह इस विधानसभा क्षेत्र में नया इतिहास बनाने में सफल नहीं रहे।
पोहरी विधानसभा क्षेत्र जब से अस्तित्व मेें आया है, तब से यहां से विधायक बनने का गौरव या तो धाकड़ उम्मीदवार या फिर ब्राह्मण उम्मीदवार ने प्राप्त किया है। परम्परा यह रही है कि यदि कांग्रेस या भाजपा में से एक पार्टी ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट देती है तो दूसरी पार्टी धाकड़ उम्मीदवार पर दाव लगाती है। इस विधानसभा क्षेत्र में धाकड़ मतदाताओं का वर्चस्व है और उनकी संख्या 40 हजार से अधिक हैं। जबकि ब्राह्मण उम्मीदवार सजातीय के साथ-साथ धाकड़ों के विरूद्ध अन्य जातियों के वोटों को एकत्रित कर मुकाबले में आ जाता है। इस चुनाव में भाजपा ने सबसे पहले यहां से दो बार से लगातार जीत रहे विधायक प्रहलाद भारती को उम्मीदवार बनाया। श्री भारती की उम्मीदवारी से संभावना बनी कि कांग्रेस शायद यहां से परम्परानुसार ब्राह्मण उम्मीदवार को टिकट दे। कांग्रेस में इस विधानसभा क्षेत्र के लिए ब्राह्मण उम्मीदवारों की कमी नहीं है। पूर्व विधायक हरिवल्लभ शुक्ला, गणेश गौतम, एनपी शर्मा, विजय शर्मा आदि टिकट की दौड में थे। लेकिन कांग्रेस ने परम्परा के विपरीत इस बार धाकड़ उम्मीदवार सुरेश राठखेड़ा को टिकट दे दिया। शायद कांग्रेस नेताओं के जेहन में 1993 का परिदृश्य था। यह एक जोखिम भरा दाव था। मुकाबले में दो-दो धाकड़ उम्मीदवार मैदान में उतर चुके थे। इस स्थिति का फायदा उठाते हुए बसपा ने भाजपा के बागी कैलाश कुशवाह को उम्मीदवार बना दिया। श्री कुशवाह के पक्ष में क्षेत्र के अधिकतर दोनों दलों के ब्राह्मण नेता एकजुट हो गए। जिससे ब्राह्मण मतों का कुशवाह के पक्ष में धु्रवीकरण होने की संभावना बढ गई। इस क्षेत्र में कुशवाह मतदाताओं की संख्या भी 15 हजार से अधिक है तथा पर्याप्त संख्या में दलित वोट हैं और इस आधार पर बसपा उम्मीदवार कैलाश कुशवाह की जीत की संभावना व्यक्त की जाने लगी थी। संभावना व्यक्त की जा रही थी कि धाकड़ मतों का 50-50 प्रतिशत धु्रवीकरण कांग्रेस प्रत्याशी सुरेश राठखेड़ा और भाजपा प्रत्याशी प्रहलाद भारती के पक्ष में होगा। यह गणित बसपा प्रत्याशी कैलाश कुशवाह की जीत के लिए पर्याप्त था। परंतु ऐसी स्थिति में अनुसूचित जाति और जनजाति के मतदाताओं ने कांग्रेस प्रत्याशी सुरेश राठखेड़ा को समर्थन देकर उनकी जीत सुनिश्चित कर दी।
0 Comments