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कर्त्तव्य विमुख सत्ता और बेजान तंत्र, नैसर्गिक मूल सुविधा एवं अधिकार में बाधा


कर्त्तव्य विमुख सत्ता और बेजान तंत्र, नैसर्गिक मूल सुविधा एवं अधिकार  में बाधा
लोकतंत्र में अधिकारों से वंचित रखना शर्मनाक
व्ही.एस.भुल्ले
विलेज टाइम्स समाचार सेवा।
किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में बेजान तंत्र की अर्कमण्यता कितनी घातक हो सकती है। इसका अंदाजा विश्व के महातम लोकतंत्र में नैसर्गिक सुविधा आवाम के मूल अधिकार उनके कर्त्तव्यों से वंचित देख लगाया जा सकता है। जहां तक मूल अधिकारों का सवाल है तो संविधान में उनका स्पष्ट उल्लेख है। मगर इस महानतम लोकतंत्र में अर्कमण्यता की स्थापित होती नजीर ने यह साबित कर दिया कि जिन्हें संवैधानिक तौर पर सशक्त सक्षम बना जिनसे शसक्त सक्षम लोकतंत्र की अपेक्षा की गयी। वह अपने कर्त्तव्य निर्वहन में अक्षम असफल ही नहीं नकारा साबित हो रहे है।
क्योंकि जिन लोगों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अंगीकार कर उसे स्वीकार किया। उनसे नैतिक कर्त्तव्य निर्वहन की तो अपेक्षा की जा सकती है। मगर संविधान, विधानसभा अनुरुप कर्त्तव्य निर्वहन का दायित्व तो उन संवैधानिक संस्थाओं का होता है। जिन्हें पर्याप्त संसाधन ही नहीं संवैधानिक विधान अनुरुप शसक्त, सक्षम बनाया जाता है।
जब यहीं संस्थायें व इन संस्थाओं में बैठे लोग अपने निहित स्वार्थ, अर्कमण्यता के चलते एक मजबूत लोकतंत्र और लोगों को उनके नैसर्गिक अधिकार, सुविधायें मुहैया कराने में अक्षम, असफल साबित होने लगे। तो कैसे मजबूत शसक्त, लोकतंत्र की कल्पना की जा सकती है। बढ़ती अर्कमण्यता कर्त्तव्य विमुखता गांव, गली, नगर शहर, सड़कों पर बढ़ी अराजकता, अतिक्रमण लोकतंत्र के वो महा राक्षस है। जो मानव जीवन को अशांत ही नहीं उसे नरकीय बनाने काफी है।
्रकारण संवैधानिक संस्थाओं में बैठे लोगों की अर्कमण्यता और उसका गैर जबावदेह आचरण जो लोकतंत्र के लिए घातक है। अगर समय रहते निहित स्वार्थो में डूबे सत्ता के अंधे भक्तों ने इस ओर ध्यान नही दिया तो आने वाले समय में अराजकता की सत्ता हो, तो कोई अतिसंयोक्ति न होगी।
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